Tuesday, December 20, 2011

क्या मैं आपसे बात कर सकती हूँ ?






एक पारिवारिक आत्मीय का संदेश आया. मैं पारिवारिक स्तर पर ऐसी स्थिति में थी जब दिमाग़ काम नहीं कर रहा था और अपनी मम्मी और चाचाजी की अस्वस्थता को लेकर अस्पताल में मसरूफ़ थी. जवाब तो दे दिया लेकिन उसके बाद मन में विचार कौंधा कि तकनीक का आसरा लेकर वक़्त बे वक़्त हम किसी न किसी को कॉल करते रहते हैं और जानते नहीं कि सामने वाले की मन:स्थिति क्या है. वह कहाँ है.किसके उल्लास या विषाद से गुज़र रहा है. ऐसे में यह विचार आया कि एस.एम.एस. तक तो ठीक है लेकिन मोबाइल करने के बाद हमें सबसे पहले यह पूछना चाहिये कि क्या इस समय आपसे बात की जा सकती है.आप किसी ऐसी मानसिक व्यस्तता में तो नहीं कि मेरे बात करने से उसमें विघ्न पैदा होता हो. हो ये रहा है कि हमने मोबाइल को जीवन का अनिवार्य हिस्सा बना लिया है और हर लम्हा और हर स्थान पर हमारे साथ होता है. हम अपनी सुविधा के लिये इस साधन को अपने साथ रखते हैं किंतु इसका लाभ दूसरा व्यक्ति भी तो लेना चाहता है और उसे पता नहीं होता कि हम कब / कहाँ व्यस्त हैं.शुरू शुरू में ऐसा पूछना कि बात कर सकते हैं क्या बड़ा औपचारिक लगता है लेकिन धीरे धीर आप इसके लिये अभ्यस्त हो जाते हैं. सामने वाला भी कहे न कहे लेकिन आपके इस सलीक़े का क़ायल ज़रूर हो जाता है .हमारे एक परिचित ऐसे भी हैं जो बात करने के पहले एस.एम.एस.करके पूछते हैं is it good time to talk ? तो अगली बार आप भी पूछ रहे हैं न कि क्या मैं आपसे बात कर सकती हूँ ?

2 comments:

  1. Really very nice idea - I full agree with u.

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  2. आप बिलकुल ठीक सोचती हैं निधि जी ..ऐसी ही परिस्थिति से गुज़रकर जब मैंने यह अनुभव किया कि बात करने से पहले जिसे कॉल किया जा रहा है उसकी मनोदशा समझ लेना बेहद ज़रूरी है तब से फ़ोन पर अभिवादन के बाद मेरा पहला बोला गया वाक्य यही होता है कि क्या अभी बात हो सकती है ? आप व्यस्त तो नहीं ...? कभी कोई कॉल रिसीव नहीं करता है तब भी लगातार दूसरी बार कॉल करना भी मै ठीक नहीं समझता ...हो सकता है कि वह कॉल रिसीव करने की स्थिति में न हो और यदि देख/जान कर टाल रहा है तब तो दोबारा कॉल करने का क्या लाभ

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