पति-पत्नी में किसी बात तक़रार हो गई. बात बहुत ज़्यादा बढ़ गई.दोनो एक फ़ैमिली काँसिलर से मिलने गये और बताया कि हम दोनो के बीच अब निभ नहीं रही है.काँसिलर ने उन्हें दो तीन बार अपने दफ़्तर में बुलवाया. जब भी तलाक़ का कारण पूछा तो दोनो एकदूसरे की बुराई करने कोई कसर बाक़ी नहीं रखते. अंतत: एक दिन दोनो ने तय कर लियाऔर फ़ैमिली काँसिलर को बताया कि हम तलाक़ लेना चाहते हैं. काँसिलर अनुभवी और वात्सल्यमयी महिला थीं. उन्होंने कहा मैं आपके विच्छॆदीकरण के काग़ज़ तैयार करवाती हूँ लेकिन तब तक आप दोनो को दो अलग अलग टेबल्स पर बैठ कर एकदूसरे की अच्छाइयाँ एक काग़ज़ पर लिख कर देनी होगी. दोनो ने जिज्ञासा से काँसिलर को देखा तो महिला ने कहा नहीं कुछ ख़ास वजह नहीं मैं तुम दोनों में अच्छइयों से परिचित होना चाहती हूँ.जहाँ तक बुराइयों का सवाल है वह तो मुझे तुम दोनो बताते ही रहे हो.पति-पत्नी ने काग़ज़ लिया और लिखकर काँसिलर को दे दिया. काँसिलर ने उन काग़ज़ो पर एक नज़र डाली और उनके काग़ज़ एकदूसरे को सौंप दिये और कहा कि मैं चाहती हूँ कि तुम दोनो भी इसे एक बार पढ़ लो.
पत्नी ने पति द्वारा लिखी अच्छाइयाँ पढ़ीं और पति ने पत्नी द्वारा. दोनो अपनी जगह बैठे सुबकने लगे और उनकी आँखों से अविरल अश्रुधार बहने लगी. दोनो ख़ामोश निगाहों से काँसिलर को देख ही रहे थे तो वे बोलीं बच्चों यहाँ इस काग़ज़ पर दस्तख़त कर दो और अपनी ज़िन्दगी की राह अलग-अलग कर लो.दोनो अपनी जगह खड़े हो गये और बोले मैडम ऐसे काग़ज़ से क्या फ़ायदा जो हमें अलग कर दे.काँसिलर बोली मैं समझी नहीं. पति ने टेबल से काग़ज़ उठाया और फ़ाड़ दिया. पत्नी ने अपने जीवन साथी का हाथ थामा और कहा थैक्यूँ मैडम…कभी हमारे साथ चाय पीने हमारे घर आइये न…ये कहते हुए वे दोनो दफ़्तर से बाहर निकल गये….अब फ़ैमिली काँसिलर की आँखों मे आँसू थे.
badhiya , inhi baaton ko jyada yaad rakhna chahiye ...
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ReplyDeleteनिधि बेटी तुम्हारी ये कहानी बहुत मार्मिक है. ऐसी बातों को समाज में पहुँचाना बहुत ज़रूरी है. पहली बार तुम्हारे ब्लॉग पर आया. मेरे आशीर्वाद ...लिखते रहो.....लिखते रहना हमारी जिम्मेदारी है.
ReplyDeleteजीवराज सिंघी.