सारी दुनिया ,लेखक कवि वृन्द
सब गाते है माँ की महिमा
मै भी नतमस्तक हूँ
देवी प्रतिमा के आगे
कहीं चुभता मन में एक शूल
पिता की अनदेखी कर
हो न मुझसे कोई भूल
पिता जो मेरे घर की धुरी
माँ के हाथों की चूड़ी हैं
रोज़ शाम उनकी राह तकती हूँ
आकर मुझे सुलाते है
पर उनकी आँखों में नींद कहाँ
मेरे सपने पूरे करने की उधेड़बुन में
सारी रात
टाइप राईटर से आँखे चार करते हैं.
सब गाते है माँ की महिमा
मै भी नतमस्तक हूँ
देवी प्रतिमा के आगे
कहीं चुभता मन में एक शूल
पिता की अनदेखी कर
हो न मुझसे कोई भूल
पिता जो मेरे घर की धुरी
माँ के हाथों की चूड़ी हैं
रोज़ शाम उनकी राह तकती हूँ
आकर मुझे सुलाते है
पर उनकी आँखों में नींद कहाँ
मेरे सपने पूरे करने की उधेड़बुन में
सारी रात
टाइप राईटर से आँखे चार करते हैं.
सुंदर भाव !!! माँ के बारे में तो लोग अक्सर लिखते हैं, आप पिता के बारे में आपके मुखरित भाव पढ़कर अच्छा लगा ।
ReplyDeleteso beautiful..shabdon se preet hi jindagi ko geet bna sakti hai :)
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