एक टीवी शो की प्रतिभागी १२ साल की लड़की ने आत्महत्या कर ली...ये ख़बर सुनी तो मन विचलित हो गया. मन ने प्रतिप्रश्न किया कि हम हमेशा अपने बच्चों में क़ामयाबी ही क्यों तलाशते हैं, इंसानियत क्यों नहीं,सलाहियतें क्यों नहीं,नेकियाँ क्यों नहीं,क्रिएटिविटि क्यों नहीं ?
यह भी विचार विचलित करता रहा कि क्यों हम अपने बच्चे को सर्वगुण सम्पन्न देखना चाहते हैं.उससे अधिक अपेक्षाएं कर के क्या हम उसे उसकी उम्र से बड़ा नहीं बना रहे हैं.उसका बचपन नहीं रौंद रहे हैं.ये तो समझना ही पड़ेगा कि कच्चा मिट्टी का घड़ा अपने पानी नहीं टिका सकेगा.
हम बच्चों से बड़ों जैसी उम्मीदें क्यों करते हैं.उसने कोई ग़लती की नहीं और हम चिल्लाना शुरू कर देते हैं..इतने बड़े हो गए अभी तक अक़्ल नहीं आई तुम्हें.पता नहीं तुम कब समझोगे...कब बड़े और ज़िम्मेदार बनोगे... बच्चो से हम बड़ो जेसी उम्मीदें क्यों करते है ? हम क्यों चाहते है...जबकि हक़ीक़त यह है कि हम भी उसकी उम्र में लगभग वैसी ही हरक़तें या ग़लतियाँ करते थे जैसी वह कर रहा है या कर रही है.
इस बात को ध्यान में रखना ज़रूरी है कि हम अपना प्रारब्ध लेकर आए हैं और वह अपना. अपने प्रारब्ध में उसका प्रारब्ध तलाशना बेमानी है. यह भी सोचियेगा कि आप जो भी हैं आज क्या उसके निशान कल थे...बीते कल आप भी कच्चे ही थे.आते आते ही आपमें एक तरह की गंभीरता आई और ज़िन्दगी को क़ामयाब बनाने का नज़रिया और दृष्टिकोण मिला.
ध्यान रहे बच्चे की प्रतिभा को सहज रूप से आगे बढ़ने का मौक़ा और वातावरण दीजिये. सिर्फ़ चिल्लाने और क्रोध करने से कुछ नहीं होगा. किसी किसी बच्चे को ज़िम्मेदार बनने में थोड़ा समय लगता है.इस प्रतिस्पर्धी समय में उसे थोड़ा सम्हलने का मौक़ा दीजिये. रियलिटी शोज़ या मीडिया हाइप के दौर में दूसरे क़ामयाब बच्चों को देखकर नाहक अपने बच्चे पर प्रेशर मत डालिये कि तुम्हें भी ऐसा ही बनना है. बच्चे की नैसर्गिक प्रतिभा को देख भाल कर उसे तराशने का ज़िम्मा आपका है. आप घर में ही उसके प्रतिस्पर्धी मन बन जाइये. बच्चे में प्रतिभा ठूँसने की कोशिश मत कीजिये. न पढ़ाई के मामले में , न ही किसी दीगर क्रिएटिव एक्टीविटी में. देखा-देखी के काम ठीक नहीं होते. जो दूसरा बच्चा आज आपको सफल दिखाई दे रहा है, हो सकता है उसमें असाधारण प्रतिभा हो या उसके माता-पिता ने उसकी प्रतिभा निखारने में अतिरिक्त प्रयास किये हों वैसा वातावरण क्रिएट किया हो.
बच्चों की मस्ती,खेल और बेफ़िक्री में अपना बचपन तलाशने की कोशिश कीजिये,आपको भी अपने बच्चे के साथ बच्चा बन जाना आना चाहिये. उसका दोस्त बनना आना चाहिये,उससे बेहतर संवाद स्थापित करना आना चाहिये. सिर्फ़ स्टेटस या अपने मानसिक संतोष के लिये अपने बच्चे को किसी कोचिंग,डांस क्लास या कम्प्यूटर क्लास में भेजना उसका समय और अपना पैसा नष्ट करना ही है. इस ज़बरदस्ती से बड़ा नुकसान यह भी है कि आप अपनी ज़िद के कारण अपने बच्चे को अपने से दूर ही कर रहे हैं.
धीरज रखिये हर चीज़ का समय होता है. जैसे कि फूल के खिलने का या डाली पर फल के पकने का ...बेमौसम पकाए गए या खाए गए फल कभी भी मिठास नहीं देते.आपका संयम,स्नेह, मार्गदर्शन,मित्रता और ज़रूरत पड़ने पर लागू किया गया अनुशासन आपके बच्चे का सुनहरा भविष्य रच सकता है....
यह भी विचार विचलित करता रहा कि क्यों हम अपने बच्चे को सर्वगुण सम्पन्न देखना चाहते हैं.उससे अधिक अपेक्षाएं कर के क्या हम उसे उसकी उम्र से बड़ा नहीं बना रहे हैं.उसका बचपन नहीं रौंद रहे हैं.ये तो समझना ही पड़ेगा कि कच्चा मिट्टी का घड़ा अपने पानी नहीं टिका सकेगा.
हम बच्चों से बड़ों जैसी उम्मीदें क्यों करते हैं.उसने कोई ग़लती की नहीं और हम चिल्लाना शुरू कर देते हैं..इतने बड़े हो गए अभी तक अक़्ल नहीं आई तुम्हें.पता नहीं तुम कब समझोगे...कब बड़े और ज़िम्मेदार बनोगे... बच्चो से हम बड़ो जेसी उम्मीदें क्यों करते है ? हम क्यों चाहते है...जबकि हक़ीक़त यह है कि हम भी उसकी उम्र में लगभग वैसी ही हरक़तें या ग़लतियाँ करते थे जैसी वह कर रहा है या कर रही है.
इस बात को ध्यान में रखना ज़रूरी है कि हम अपना प्रारब्ध लेकर आए हैं और वह अपना. अपने प्रारब्ध में उसका प्रारब्ध तलाशना बेमानी है. यह भी सोचियेगा कि आप जो भी हैं आज क्या उसके निशान कल थे...बीते कल आप भी कच्चे ही थे.आते आते ही आपमें एक तरह की गंभीरता आई और ज़िन्दगी को क़ामयाब बनाने का नज़रिया और दृष्टिकोण मिला.
ध्यान रहे बच्चे की प्रतिभा को सहज रूप से आगे बढ़ने का मौक़ा और वातावरण दीजिये. सिर्फ़ चिल्लाने और क्रोध करने से कुछ नहीं होगा. किसी किसी बच्चे को ज़िम्मेदार बनने में थोड़ा समय लगता है.इस प्रतिस्पर्धी समय में उसे थोड़ा सम्हलने का मौक़ा दीजिये. रियलिटी शोज़ या मीडिया हाइप के दौर में दूसरे क़ामयाब बच्चों को देखकर नाहक अपने बच्चे पर प्रेशर मत डालिये कि तुम्हें भी ऐसा ही बनना है. बच्चे की नैसर्गिक प्रतिभा को देख भाल कर उसे तराशने का ज़िम्मा आपका है. आप घर में ही उसके प्रतिस्पर्धी मन बन जाइये. बच्चे में प्रतिभा ठूँसने की कोशिश मत कीजिये. न पढ़ाई के मामले में , न ही किसी दीगर क्रिएटिव एक्टीविटी में. देखा-देखी के काम ठीक नहीं होते. जो दूसरा बच्चा आज आपको सफल दिखाई दे रहा है, हो सकता है उसमें असाधारण प्रतिभा हो या उसके माता-पिता ने उसकी प्रतिभा निखारने में अतिरिक्त प्रयास किये हों वैसा वातावरण क्रिएट किया हो.
बच्चों की मस्ती,खेल और बेफ़िक्री में अपना बचपन तलाशने की कोशिश कीजिये,आपको भी अपने बच्चे के साथ बच्चा बन जाना आना चाहिये. उसका दोस्त बनना आना चाहिये,उससे बेहतर संवाद स्थापित करना आना चाहिये. सिर्फ़ स्टेटस या अपने मानसिक संतोष के लिये अपने बच्चे को किसी कोचिंग,डांस क्लास या कम्प्यूटर क्लास में भेजना उसका समय और अपना पैसा नष्ट करना ही है. इस ज़बरदस्ती से बड़ा नुकसान यह भी है कि आप अपनी ज़िद के कारण अपने बच्चे को अपने से दूर ही कर रहे हैं.
धीरज रखिये हर चीज़ का समय होता है. जैसे कि फूल के खिलने का या डाली पर फल के पकने का ...बेमौसम पकाए गए या खाए गए फल कभी भी मिठास नहीं देते.आपका संयम,स्नेह, मार्गदर्शन,मित्रता और ज़रूरत पड़ने पर लागू किया गया अनुशासन आपके बच्चे का सुनहरा भविष्य रच सकता है....