मानव स्वभावानुसार जब भी हम भावनाओं के अतिरेक प्रवाह में बहने लगते हैं तो स्वत: ही अपनी मातृभाषा ,बोली में बतियाने लगते है।कहा जाता है कि, मन के भावों को व्यक्त करने का माध्यम स्वभाषा ही है ।सभ्य एवं प्रगतिशील होने में हम अपनी भाषा ,बोली से थोड़े दूर होने लगे हैं, लेकिन राधेश्याम पाठक 'उत्तम' जी की मालवी बोली लिखी पुस्तक पढ़कर मन का सारा संशय मिट गया । नानी वार्ता (लघु -कथा) की यह किताब मन में सालों से पल रहे भ्रम और पूर्वाग्रहों को समाप्त कर देती है ।ग्रामीण परिवेश हो या शहरी, भाषा चाहे अंग्रेजी हो या साधारण सी बोली... ॥मन के उद्दगार को व्यक्त करना ही महत्त्वपूर्ण है भाव इन भाषिक बन्धनों से मुक्त है ।स्थानीय बोली मालवी लिखी यह पुस्तक छोटी जरुर है पर बहुत उपयोगी है .ऐसा नहीं है कि पुस्तक की हर वार्ता सिर्फ सन्देश देती या लोक जीवन की टीस दिखाती है ,बल्कि कुछ कहानियाँ सामाजिक बदलाव ,एवं बुजुर्गों की नई पीढ़ी के प्रति बदलती मानसिकता भी दर्शाती है तो सास -बहू के सुधरते संबंधों की शुरुआत भी बताती है .प्रकृति के माध्यम से सीख देने की प्रथा पंचतंत्र ,हितोपदेश से चली आ रही है जो इस पुस्तक में भी विद्यमान है .गाँव के रीति- रिवाज ,अंधविश्वास सभी पर लेखक ने अपनी लेखनी से प्रहार किया है .तो भूत-प्रेत की आदमी से तुलना में भूत प्रेत को ही आदमी से अच्छा बताया है ये किस तरह बताया है इसकी जानकारी तो कहानी पढ़कर ही मिलेगी .कहीं अपने व्यंग्य की बौछार (हुदा- हादा भगवान ) से मानव मन को भिगोया है .
'समता को राज ','संकलप' 'टक्टर ने ताकत' आदि वार्ता आज की राजनीति का असली चहेरा हम सबके सामने लाती है .
लेकिन इस पूरी पुस्तक में मेरे मन को छूने वाली कहानी 'हत्यारों कुंडो', 'मुन्ना की कमी ','गौ दान '(जिसे प्रेमचंदजी की कहानी का ही आगे का भाग कह सकते है, इसमें उत्तमजी ने कम शब्दों में गंभीर घाव किये है ),'पग टुटीरिया ','फावड़ो','भागीरथी ' और नि;संदेह 'नी तीन में नी तेरा में' रही .जो पीढ़ीगत अंतर को कम करती लगी .
जब तलक हम अपने रोजमर्रा के जीवन में प्रकृति के उपादानों के साथ सामंजस्य नहीं बिठा लेते , अपनी अगली पीढ़ी को सुखी एवं दीर्घायु जीवन का आशीष देना निष्फल रहेगा।इस कटु सत्य की ओर लेखक ने अपनी नानी वार्ताओं में इशारा कर दिया है ।इस पुस्तक में 76 वार्ताएं है और अंत में 4 वार्ता लेखक के भयजी (बड़े भाई )की है।मुख पृष्ठ पर लोक चित्र पुस्तक की गरिमा और लेखक का लोक कला एवं साहित्य प्रेम प्रदर्शित कर रहें हैं कुछ जगह पर प्रकाशन में हुई गलतियों के कारण थोड़ी परेशानी होती है, पर पाठक इसे नजरंदाज करके पुस्तक का आनंद ले सकते है .
मातुश्री सम्मान २००८ ,शब्द्श्री सम्मान २०१०,शब्द शिल्पी सम्मान २०१०से पुरस्कृत उत्तमजी मालवा के गौरव को बढ़ाते हुए हिंदी के साहित्य में भी अनवरत अभिवृद्धि कर रहे है. हिंदी लघु कथा 'बात करना बेकार है ' ,'मेरे भीतर का बीज ' 'परशुराम चालीसा 'आदि पुस्तके भी लेखक के नाम के अनुरूप उत्तम है .कथा रसिकों के लिए उत्तमजी को पढ़ना निश्चय ही उनके अपने प्रिय कथा लेखकों की लिस्ट को बढ़ा देगा .यह पुस्तक मालवी के निराला 'स्व.झलक निगम' को समर्पित की गई है सिर्फ पुस्तक की प्रशंसा करना उचित नहीं लग रहा इसलिए आपके स्वनिर्णय के लिए दो कहानियाँ यहाँ पोस्ट कर रहीं हूँ .जिनकी चर्चा रह गई थी ।
१ केता खेमा
नब्बे बरस की डोकरी खाटला पे पड़ी -पड़ी कई री थी - हे भगवान, अबे तू म्हारे उठई ले। घणी कन्द्रयगी हूँ ।
छे साल को पोतो कने अई ने बोल्यो - 'दादी थारे मौत चावे।'
-'हां बेटा हां ।'
-'आतंकवादी ती मांग । पापा कई रया था, आतंकवादी केता खेमे हूणी ले .......'
2बेटी ने गाय
चोपाल मेंबेठा रामो ने गोपाल्यो दोय बात करी रया था .रामो बोल्यो _'बेटी ने गाय एक जात की,जई हांको वई चाली पड़े ।'
चोपाल पे छोरा -छोरी खेली रया था .छे बरस की शामुड़ी दौड़ी ने अई ने रामो ती बोली -'काकाजी म्हू गाय नी हूँ '
रामो ने गोपाल्यो दोय शामुड़ी का मुंडा हामे देखताज रईग्या.
पुस्तक का नाम - -नी तीन में नी तेरा में (नानी वार्ता संग्रह )
लेखक --राधेश्याम पाठक 'उत्तम'(मब.नो.९८२७२९१०४९)
भाषा --मालवी (बोली)
प्रकाशक -तथास्तु कम्प्यूटर्स एंड प्रिन्टर्स उज्जैन
कीमत -५०
पिता का न होना,जैसे घर में घर का न होगा !
12 years ago
शामुड़ी का अर्थ ?
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