Saturday, November 13, 2010

हमारे दिलों में महकने वाला गुलाब;चाचा नेहरू



पण्डितजी,जवाहरलाल,नेहरूजी के बाद सबसे आत्मीय संबोधन है चाचा नेहरू जो हमारे देश की फ़िज़ाओं में गूँजता है और ख़ास बच्चों की बिरादरी का मन मोह लेता है. आज मैं ख़ुद एक माँ हूँ लेकिन चाचा नेहरू को याद कर फ़िर बच्ची बन जाना चाहती हूँ. बाल दिवस की पूर्व संध्या पर मेरी कविता के ये शब्द मुझे अपने बचपन के गलियारों की सैर करवाते हैं.मुलाहिज़ा फ़रमाएं.....

कैसी है इक जीवन गाथा
जिसका कोई अंत न आता

"मोती -स्वरूप" पितु अरु माता
"आनंद " में ही बचपन बीता

शादी की कमला रानी से
तन -मन ,जन और जेलों में

एक दृढ़ विचारक ,एक स्वप्न दृष्टा
एक ही लक्ष्य प्रधान ,नवयुग के सृष्टा

पंचशील से नाम उजारा
शांतिदूत सा नाम तुम्हारा

वित्त क्रांति का अलख जगाया
विश्व शांति का परचम फ़हराया

जन- जन के तुम प्रेरक दूत
भारत माँ के सच्चे सपूत

पुष्प गुलाब तुम्हें अर्पण
जन्मतिथि पर तुम्हें नमन

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