
मेरे शहर इन्दौर में अभी तक होली का ख़ुमार उतरा नहीं है. होली के बाद भी रंगों की मार ,आत्मीयता की
बहार ,पकवानों की महक ,भंग का नशा अभी तक यहाँ जारी है क्योकि होली का बाद होली का एक और विस्तार रंगपंचमी के रूप में पूरे मालवा और निमाड़ अंचलों में पूरी धूमधाम से होता है. इसमें टेपा सम्मेलन,हास्य कविसम्मेलन और बजरबट्टू सम्मेलन जैसे कई जमावड़े समाए हैं जो रंगपंचमी के बहाने मेरे शहर की उत्सवधर्मिता का पता देते हैं. पूरे आलम में दिल खोल कर की जाने वाली मस्ती है,छेडछाड है,चुहलबाजी सम्मिलित रहती है.इस सब में चार चाँद लगा देती हैं रंग-रंगीली गेर.गेर एक तरह का चल-समारोह है जिसमें गाना है, नृत्य हैं,जोश है,बड़ी बड़ी मिसाइले हैं जिनसे पाँच पाँच मंज़िलों तक रंगों के फ़व्वारे फ़ूट पड़ते हैं . शहर के पुरातन क्षेत्र से निकलने वाली ये गेर अलग अलग संस्थाओं द्वारा निकाली जाती है. चार से पाँच घंटो पर सड़क पर निकलता अलबेलों का ये कारवाँ इन्दौर की जनता को एक अनूठी उत्सवप्रियता से भर देता है. मन कहता है मेरे शहर से उत्सव के ये सिलसिले ख़त्म ही न हों. अभी होली गई है और फ़िर रंगपंचमी का आ जाना जैसे किसी मुराद के पूरा हो जाने जैसा होता है. स्थानीय छुट्टी होती है इस दिन और पूरा शहर गुलाल और रंग से तर-बतर होकर सड़क पर.अलग अलग भेष धरे जाते हैं,स्वांग की की शान होती है, और महिला-पुरूष मिल कर होली के गीत गाते चलते हैं . मज़े की बात यह है कि इन गेर में कोई औपचारिक निमंत्रण नहीं होता है. कोई भी सम्मिलित हो सकता है और मस्ती का हमसफ़र बन सकता है. न किसी तरह की मनुहार और न इनविटेशन की दरक़ार.
एक लम्हा मेरे शहर का आसमान नीला न होकर लाल-लाल हो जाता है. रंगो के ये बादल मन मोह लेते हैं और जीवन में सदा ख़ुश रहने की प्रेरणा बन जाते हैं. बिना किसी धर्म,जाति और ऊँच-नीच और पद-प्रतिष्ठा के इन्दौर की गेर दिलों की पास लाती है. कोई ग़ैर नहीं ; सब अपने हैं; शायद यह ख़ामोश संदेश भी देतीं हैं मेरे शहर की गेर. कभी मौक़ा मिले तो होली के बाद इन्दौर की गेर का नज़ारा देखने का समय ज़रूर निकालिये…आपको इन्दौरियों की दीवानगी पर रश्क होने लगेगा…मेरे शहर की बात ही निराली है.हो सका तो जल्द ही आपको इस उत्सव की कुछ तस्वीरें आपको दिखाऊँगी.
रंगो के हो रहा आसमान का नीला,पीला और लाल
आज बादल ने मल लिया है माथे पर गुलाल
बहार ,पकवानों की महक ,भंग का नशा अभी तक यहाँ जारी है क्योकि होली का बाद होली का एक और विस्तार रंगपंचमी के रूप में पूरे मालवा और निमाड़ अंचलों में पूरी धूमधाम से होता है. इसमें टेपा सम्मेलन,हास्य कविसम्मेलन और बजरबट्टू सम्मेलन जैसे कई जमावड़े समाए हैं जो रंगपंचमी के बहाने मेरे शहर की उत्सवधर्मिता का पता देते हैं. पूरे आलम में दिल खोल कर की जाने वाली मस्ती है,छेडछाड है,चुहलबाजी सम्मिलित रहती है.इस सब में चार चाँद लगा देती हैं रंग-रंगीली गेर.गेर एक तरह का चल-समारोह है जिसमें गाना है, नृत्य हैं,जोश है,बड़ी बड़ी मिसाइले हैं जिनसे पाँच पाँच मंज़िलों तक रंगों के फ़व्वारे फ़ूट पड़ते हैं . शहर के पुरातन क्षेत्र से निकलने वाली ये गेर अलग अलग संस्थाओं द्वारा निकाली जाती है. चार से पाँच घंटो पर सड़क पर निकलता अलबेलों का ये कारवाँ इन्दौर की जनता को एक अनूठी उत्सवप्रियता से भर देता है. मन कहता है मेरे शहर से उत्सव के ये सिलसिले ख़त्म ही न हों. अभी होली गई है और फ़िर रंगपंचमी का आ जाना जैसे किसी मुराद के पूरा हो जाने जैसा होता है. स्थानीय छुट्टी होती है इस दिन और पूरा शहर गुलाल और रंग से तर-बतर होकर सड़क पर.अलग अलग भेष धरे जाते हैं,स्वांग की की शान होती है, और महिला-पुरूष मिल कर होली के गीत गाते चलते हैं . मज़े की बात यह है कि इन गेर में कोई औपचारिक निमंत्रण नहीं होता है. कोई भी सम्मिलित हो सकता है और मस्ती का हमसफ़र बन सकता है. न किसी तरह की मनुहार और न इनविटेशन की दरक़ार.
एक लम्हा मेरे शहर का आसमान नीला न होकर लाल-लाल हो जाता है. रंगो के ये बादल मन मोह लेते हैं और जीवन में सदा ख़ुश रहने की प्रेरणा बन जाते हैं. बिना किसी धर्म,जाति और ऊँच-नीच और पद-प्रतिष्ठा के इन्दौर की गेर दिलों की पास लाती है. कोई ग़ैर नहीं ; सब अपने हैं; शायद यह ख़ामोश संदेश भी देतीं हैं मेरे शहर की गेर. कभी मौक़ा मिले तो होली के बाद इन्दौर की गेर का नज़ारा देखने का समय ज़रूर निकालिये…आपको इन्दौरियों की दीवानगी पर रश्क होने लगेगा…मेरे शहर की बात ही निराली है.हो सका तो जल्द ही आपको इस उत्सव की कुछ तस्वीरें आपको दिखाऊँगी.
रंगो के हो रहा आसमान का नीला,पीला और लाल
आज बादल ने मल लिया है माथे पर गुलाल
रंगपंचमी के दिन मेरी ये पोस्ट पढ़ते हुए यदि आपको हमारे मालवा के दो होली गीत सुनने का जी करे तो वरिष्ठ कवि दादा नरहरिजी पटेल की आवाज़ में सुनिये:
रंग तन,रंग मन होली लाई रंग गुलाल
सब हिल मिल आज खेलो होरी