Saturday, April 17, 2010

पिता और मेरे सपने












सारी दुनिया ,लेखक कवि वृन्द
सब गाते है माँ की महिमा
मै भी नतमस्तक हूँ
देवी प्रतिमा के आगे
कहीं चुभता मन में एक शूल
पिता की अनदेखी कर
हो न मुझसे कोई भूल
पिता जो मेरे घर की धुरी
माँ के हाथों की चूड़ी हैं
रोज़ शाम उनकी राह तकती हूँ
आकर मुझे सुलाते है
पर उनकी आँखों में नींद कहाँ
मेरे सपने पूरे करने की उधेड़बुन में
सारी रात
टाइप राईटर से आँखे चार करते हैं.

Thursday, April 1, 2010

क्या आपने ग़ुस्से,बैर,और जलन का भी इयर एण्डिंग कर दिया ?

मार्च आते ही सरकारी, प्रशासनिक, व्यापारिक यंहा तक की आम दफ्तरों एवं छोटी-मोटी दुकानों में साल भर के लेखे -जोखे देखने की सुगबुगाहट शुरू हो जाती है.सभी व्यस्त रहते है अपनी वित्तीय स्थिति का अवलोकन करने में ,नफ़ा -नुकसान जांचने में,लेनदारी -देनदारी निपटाने की उधेड़बुन में ...........


भारतवर्ष में हिन्दू मान्यता के अनुसार दिवाली की रात्रि को लक्ष्मी पूजन के साथ होता था..." था" इसलिए क्योंकि अब तो सभी मार्च में ही क्लोजिंग करते है॥आज रेडियो मिर्ची पर एक आर।जे. को इस क्लोजिंग शब्द की नई परिभाषा देते हुए सुना .लगा की आज की युवा पीढ़ी ऐसा सोचती है तो अवश्य ही उसमें अभी भारतीय संस्कार जीवित है.बुजुर्गों की दी हुई सीख आज भी कायम है... हमारे नेतिक मूल्य आज की "वॉव...कूल " वाली संस्कृति से ऊपर है.उसकी चर्चा वित्तीय मसलों पर न होते हुए भावनात्मक पहलु लिए हुए थी ... सार यह था कि क्यों न हम वर्ष भर में हुए किसी के प्रति अपने मन में पाले हुए बैर के ,गुस्से के,जलन के खाते को भी बंद कर दें. इस बात का लेखा जोखा रखे कि हमसे कंहा गलती हुई है.कितने ऐसे कार्य किये है जिनसे किसी को फायदा हुआ हो. गलती कें लिए क्षमा मांगे और सद्कार्य के लिए सोचे कि आगे भी ऐसा ही करते रहे. आत्मावलोकन करें कि हम अपने लक्ष्य के प्रति कितने सचेत है...गंभीर है... अपने कर्तव्यों से मुँह तो नहीं मोड़ा है...


चूँकि मुझे आंकड़ों से मोह नहीं है तो उसकी भाषा भी नहीं आती है। भावना को अभिव्यक्त देने में सहज महसूस करती हूँ वेसे यह भावनात्मक अवलोकन वार्षिक रूप से जैन धर्म में संवत्सरी पर्व के रूप में तो हिन्दू धर्म में विजयादशमी एवं मुस्लिम परिवारों में ईद का स्वरूप लिए होता है॥ आज जरुरत इस बात की है कि मन इस बात लिए हमेशा सचेत रहना चाहिए ...कि हमसे कोई ऐसी भूल न हो जिसके लिए क्षमा भाव भी कम पड़ जाए ...हम अपनी स्वतंत्रता का नाजायज फायदा तो नहीं उठा रहे है... अपनी बात कहने का अधिकार सबको है परन्तु इसका अतिक्रमण न करते हुए प्रतिक्रमण करे .स्वयं विचारे कि कहीं कोई त्रुटी न हो आगे आने वाले वर्ष में कुछ अच्छा करने का प्राण लें .


अच्छा यही है कि हम इस अकांउट्स के इयर एण्डिंग के साथ अपने सदव्यवहार,सौजन्यता,अपनेपन,अच्छाइयों और सदगुणों की बैलेंस शीट भी बना लें और और नए वर्ष में मन के खातों में सद्कार्यों का अकाउंट खोककर नई शुरुआत करें ..