Friday, March 5, 2010

रंगपंचमी-इन्दौर की विश्व-विख्यात गेर;जहाँ कोई नहीं ग़ैर.


मेरे शहर इन्दौर में अभी तक होली का ख़ुमार उतरा नहीं है. होली के बाद भी रंगों की मार ,आत्मीयता की
बहार ,पकवानों की महक ,भंग का नशा अभी तक यहाँ जारी है क्योकि होली का बाद होली का एक और विस्तार रंगपंचमी के रूप में पूरे मालवा और निमाड़ अंचलों में पूरी धूमधाम से होता है. इसमें टेपा सम्मेलन,हास्य कविसम्मेलन और बजरबट्टू सम्मेलन जैसे कई जमावड़े समाए हैं जो रंगपंचमी के बहाने मेरे शहर की उत्सवधर्मिता का पता देते हैं. पूरे आलम में दिल खोल कर की जाने वाली मस्ती है,छेडछाड है,चुहलबाजी सम्मिलित रहती है.इस सब में चार चाँद लगा देती हैं रंग-रंगीली गेर.गेर एक तरह का चल-समारोह है जिसमें गाना है, नृत्य हैं,जोश है,बड़ी बड़ी मिसाइले हैं जिनसे पाँच पाँच मंज़िलों तक रंगों के फ़व्वारे फ़ूट पड़ते हैं . शहर के पुरातन क्षेत्र से निकलने वाली ये गेर अलग अलग संस्थाओं द्वारा निकाली जाती है. चार से पाँच घंटो पर सड़क पर निकलता अलबेलों का ये कारवाँ इन्दौर की जनता को एक अनूठी उत्सवप्रियता से भर देता है. मन कहता है मेरे शहर से उत्सव के ये सिलसिले ख़त्म ही न हों. अभी होली गई है और फ़िर रंगपंचमी का आ जाना जैसे किसी मुराद के पूरा हो जाने जैसा होता है. स्थानीय छुट्टी होती है इस दिन और पूरा शहर गुलाल और रंग से तर-बतर होकर सड़क पर.अलग अलग भेष धरे जाते हैं,स्वांग की की शान होती है, और महिला-पुरूष मिल कर होली के गीत गाते चलते हैं . मज़े की बात यह है कि इन गेर में कोई औपचारिक निमंत्रण नहीं होता है. कोई भी सम्मिलित हो सकता है और मस्ती का हमसफ़र बन सकता है. न किसी तरह की मनुहार और न इनविटेशन की दरक़ार.
एक लम्हा मेरे शहर का आसमान नीला न होकर लाल-लाल हो जाता है. रंगो के ये बादल मन मोह लेते हैं और जीवन में सदा ख़ुश रहने की प्रेरणा बन जाते हैं. बिना किसी धर्म,जाति और ऊँच-नीच और पद-प्रतिष्ठा के इन्दौर की गेर दिलों की पास लाती है. कोई ग़ैर नहीं ; सब अपने हैं; शायद यह ख़ामोश संदेश भी देतीं हैं मेरे शहर की गेर. कभी मौक़ा मिले तो होली के बाद इन्दौर की गेर का नज़ारा देखने का समय ज़रूर निकालिये…आपको इन्दौरियों की दीवानगी पर रश्क होने लगेगा…मेरे शहर की बात ही निराली है.हो सका तो जल्द ही आपको इस उत्सव की कुछ तस्वीरें आपको दिखाऊँगी.

रंगो के हो रहा आसमान का नीला,पीला और लाल
आज बादल ने मल लिया है माथे पर गुलाल

रंगपंचमी के दिन मेरी ये पोस्ट पढ़ते हुए यदि आपको हमारे मालवा के दो होली गीत सुनने का जी करे तो वरिष्ठ कवि दादा नरहरिजी पटेल की आवाज़ में सुनिये:

रंग तन,रंग मन होली लाई रंग गुलाल

सब हिल मिल आज खेलो होरी


Monday, March 1, 2010

होली आई ! आपने पिलाई की नही; ठंडाई


















होली की ठिठोली में मज़ा बढ़ाने में तो ठंडाई का मज़ा है ही ;
आप एक अच्छे मेज़बान भी साबित हो सकते हैं.
कृपया सबसे नोट सामग्री नोट कर लें:


बादाम : 250 ग़्राम
काजू : 250ग्राम,
गुलाब पन्खुरिया : 20 ग्राम,
खसखस : 100 ग्राम,
मगज : 100 ग्राम,
काली मिर्च : एक चम्मच,
सौफ़ : एक चम्मच,
छोटी इलायची : 10-12,
केसर : एक ग्राम
केवडा : कुछ बून्दे,
गुलाब जल : 2 चम्मच
चीनी : 400 ग्राम
दूध : 4 लीटर ,
कटा पिस्ता : (सजावट के लिए) 30 ग्राम्


विधि:बादाम को अलग से गलाकर रख दें ,काजू गुलाब की पत्ती, खसखस, काली मिर्च, सौफ़, केसर ,मगज आदि को पानी मे एक घन्टे के लिए भीगने दें । उसके बाद महीन पीस लें ,बादाम का अलग से पेस्ट बना लें , थोडा पानी डालकर सारा पेस्ट छान लें । अब दूध को उबाल कर ठण्डा कर लें इसमे चीनी ,केवडा, गुलाब जल डाल दें ; इलायची को छीलकर उसका पावडर बना लें; दूध मे डाल दें .और फ़िर सभी पेस्ट मिला दें । अच्छी तरह सभी चीज़े मिलाने के बाद दूध को फ़्रिज में रख दें । मेहमानों को सर्व करते समय कटे हुए पिस्ते से सजावट कर दें ।

जल्दी कीजिये..होली जो है. वैसे ठण्डाई आप पूरी गर्मियों में बना सकते हैं;यह एक शानदार शीतलपेय है. इम्तेहान के दिनों में बच्चों के लिये भी अच्छा रहता है.उम्मीद है आपके हाथों से ठंडाई बढ़िया बनेगी..विधि आसान है,बनाना भी आसान.तो जल्दी कीजिये मैं आ रही हूँ आपके हाथ की ठंडाई पीने.

मेहमानों को पिलाइये प्यार से ठंडाई;
आप सभी को होली की प्रेम भरी बधाई.